Wednesday, August 31, 2011

भाद्रपद मॉस शुक्ल पक्ष चतुर्थी पर कैसे करे गणेश पूजन...!!!


श्रीगणेश चतुर्थी विघ्नराज, मंगल कारक, प्रथम पूज्य, एकदंत भगवान गणपति के प्राकटय का उत्सव पर्व है। आज के युग में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मानव जाति को गणेश जी के मार्गदर्शन व कृपा की आज हमें सर्वाधिक आवश्यकता है। आज हर व्यक्ति का अपने जीवन में यही सपना है की रिद्धि सिद्धि, शुभ-लाभ उसे निरंतर प्राप्त होता रहे, जिसके लिए वह इतना अथक परिश्रम करता है | ऎसे में गणपति हमें प्रेरित करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते है की विषय का ज्ञान अर्जन कर विद्या और बुद्धि से एकाग्रचित्त होकर पूरे मनोयोग तथा विवेक के साथ जो भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु परिश्रम करे, निरंतर प्रयासरत रहे तो वह सफलता का वरण अवश्य करेगा | गणेश पुराण के अनुसार गणपति अपनी छोटी-सी उम्र में ही समस्त देव-गणों के अधिपति इसी कारण बन गए क्योंकि वे किसी भी कार्य को बल से करने की अपेक्षा बुद्धि से करते हैं। बुद्धि के त्वरित व उचित उपयोग के कारण ही उन्होंने पिता महादेव से वरदान लेकर सभी देवताओं से पहले पूजा का अधिकार प्राप्त किया |

गणेश स्थापना वर्ष 2011 का विशेष मुहूर्त
सुबह 6:20 से 7:50 तक- शुभ। 
दोपहर 12:20 से 1:30 तक- लाभ ।
संध्या (शाम) 4:50 से 6:20 तक- शुभ ।
इनके अतिरिक्त वृश्चिक लग्न में (सुबह 11:44 से दोपहर 1:30 ) तथा कुंभ लग्न में (शाम 5:52 से 7: 03) भी भगवान श्रीगणेश की स्थापना की जा सकती है क्योंकि यह दोनों स्थिर लग्न है। इन लग्नों में किया गया कोई भी शुभ कार्य स्थाई होता है। आप इस का ध्यान रखे और लाभ उठाये।

कैसे करे गणपति पूजन 
सर्वप्रथम एक शुद्ध मिटटी या किसी धातु से बनी श्री गणेश जी की मूर्ति घर में लाकर स्थापित करे व मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से उनका पूजन करना चाहिए तथा दक्षिणा अर्पित करके 21 लडडुओं का भोग लगाने का विधान है । इनमें से पांच लडडू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राम्हणों में बांट देना चाहिए। गणेश जी की पूजा सायंकाल के समय की जानी चाहिए जो उत्तम है। 


चन्द्र दर्शन निषेध 
'जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है | इस दिन चन्द्र दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था । 
यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए- 
'सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥

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