वायव्य कोण पर वरुण देव का पूर्ण अधिकार है | इस स्थान का सीधा सम्बन्ध घर में भूतल पर वायु व जल से प्रभाव से है | इसलिए घर में जल भण्डारण हेतु सभी टंकियां इस स्थान पर रखने का निर्देश प्राप्त होता है | उसके आलावा यह स्थान मेहमानों का कक्ष, विवाह योग्य कन्या का कक्ष, घर के बड़े बेटे - बहु का कक्ष, अन्न भण्डार, स्टोर, वाहन तथा पशु का स्थान, आगंतुक कक्ष (ड्राइंग रूम) आदि बनाना शास्त्र सम्मत है |
- पूर्णिमा की रात्रि चावल - दूध की खीर बनाकर चन्द्रदेव को समर्पित कर व ब्रह्मण को दान कर स्वयं ग्रहण करे |
- चन्द्र व गंगाधारी महादेव शिव, वरुणदेव अथवा चंद्र के मंत्रों का जप तथा हनुमान चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
- वायव्य क्षेत्र में (स्वाति जल) वर्षा का जल किसी कांच की हरी या नीली बोतल में भर कर रखना चमत्कारिक लाभ देता है |
- इस दिशा में एक छोटा फव्वारा या कृतिम मछलीघर जिसमे आठ सुनहरी मछलियाँ व एक काली मछली हो वह स्थापित करें।
- अपनी मां का यथासंभव आदर करें, सुबह उठकर उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें और शुभ अवसरों पर उन्हें खीर खिलाएं।
- किसी तीर्थ या धार्मिक महत्व्य के जलस्थान, नदी में पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव का ध्यान कर दूध का अर्घ देना तत्काल लाभ देता है |
- वायव्य दिशा के दोष निवारण हेतु घर के पूजा स्थान में प्राण-प्रतिष्ठित मारुति यंत्र, सोम यन्त्र एवं चंद्र यंत्र की स्थापना कर पूजन करें।
- यदि इस स्थान पर किसी भी प्रकार का दोष हो तो वहां मारुतिनंदन श्री हनुमान या श्री शिव जिन्होंने मस्तक पर चन्द्र व जटा में माँ गंगा को धारण किया है को स्थापित करे |
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